BSTSC & BTSC MES :> - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - (Explanation of the Brief Summary of the Proceedings of the {SLP (C) - 000020 /2018 of Hon'ble SC, New Delhi} :- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - नियोजित शिक्षक साथियों, हमारे अस्तित्व एंव अस्मिता संरक्षण का तात्कालिक ऐतिहासिक न्यायिक महासंघर्ष {SLP (C) - 000020 /2018 of SC, New Delhi}, लगभग पराकाष्ठा पर पहुँच चुका है। Part Heard Matter के रुप में Final Disposal at Admission Stage के स्तर पर माननीय उच्चतम न्यायालय के कोर्ट नं0 11 में माननीय न्यायधीश द्वय अभय मनोहर सप्रे जी एंव उदय उमेश ललित जी द्वारा लगातार सुनवाई (Continuous Hearing), 31 जुलाई 2018 से जारी है। इस न्यायिक महासंघर्ष के अद्यतन स्थिति की संक्षिप्त समीक्षा का विश्लेषण, मैने इस सन्देश के साथ संलग्न वीडियो में आप सभी आम नियोजित शिक्षकों के सूचनार्थ संप्रेषित करने का प्रयास किया है। साथियों, वास्तव में, यह न्यायिक महासंघर्ष समाज के सर्वाधिक प्रबुद्ध वर्ग शिक्षक समुदाय की बौद्धिक स्वच्छता एंव शाषक वर्ग तथा उनकी विकृत मानसिकताओं को परिपूर्ण करने के लिए निरंतर तिकड़मबाजियों का नवनिर्माण करने वाले पदाधिकारियों के बौद्धिक मलीनता के मध्य महाद्वन्द का परिचायक है। अब, प्रस्तुत न्यायिक महासंघर्ष के इस स्तर पर माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायधीश द्वय की यह महती जिम्मेंवारी हैं कि वे यह निर्धारित करें कि समाज के भावी पीढ़ी का नवनिर्माण शिक्षक समुदाय के बौद्धिक स्वच्छ विचारों द्वारा विद्यालयों में संपादित होगा या सत्तावर्ग एवं उनकी दलाली करने वाले पदाधिकारियों के कुत्सित तिकड़मबाजियों द्वारा नेतावर्ग के आम सभाओं में या उनके पदाधिकारियों के कार्यालयों में होगा। माननीय उच्चतम न्यायालय, प्रस्तुत मामले की संजीदगी, व्यापकता एंव महत्व के मद्देनजर 31 जुलाई से मैराथन निरंतर सुनवाई कर रहा है। पिछले 6 दिनों (31 जुलाई, 1 अगस्त, 2 अगस्त, 7 अगस्त, 8 अगस्त एंव 9 अगस्त 2018) से बिहार सरकार अपने विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ताओं (S.N.Dwivedi, R. C. Dwivedi & Shyam Diwan ) के माध्यम से माननीय उच्चतम न्यायालय में असंवैधानिक नियोजन नियमावली - 2006 एंव इसके संशोधित स्वरुप की संवैधानिक वैधता एंव सार्थकता को संस्थापित करने का प्रयास कर रहा था। इस ऐतिहासिक न्यायिक महासंघर्ष में बिहार सरकार को सैद्धान्तिक रुप से लाभ पहुँचाने की मंशा से कुछ बहुरुपिये शिक्षक संगठन अपने प्रमुख वरिष्ठ अधिवक्ताओं को कोर्ट रुम से बाहर निकालकर आम नियोजित शिक्षकों से वसूले गये सहयोग राशि के बँदरबॉट में पूरी तल्लीनता के साथ व्यस्त रहे । ऐसे अवांछित बहुरुपिये प्रतिवादी पक्ष (Respondent Parties) से सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा सम्पूर्ण न्यायिक महासंघर्ष की खरीदारी करने में इन्हें थोड़ा भी संकोच नहीं होगा। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघर्ष समिति (BSTSC) द्वारा अपनायी गयी गोपनीय रणनीतियों के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप 9 अगस्त 2018 को बिहार सरकार ने बड़े नाटकीय अंदाज में कार्य दिवस के अंतिम पहर में लगभग तीन बजे अपने arguments पर विराम लगाया। प्रतिवादी पक्ष की ओर से मोर्चा संभालने के लिए वी. एन. सिंहा, डा. राजीव धवन की अनुपस्थिति में BSTSC की तरफ से पूरी तरह से तैयार थे परन्तु माननीय पी. ए. सुन्दरम जी की उपलब्धता के कारण वे चुप रहे। BSTSC के लीगल सेल की टीम (माननीय राजीव रंजन द्विवेदी, संजीव कुमार, अनिमेश उपाध्याय, अनीश मिश्रा एंव जितेन्द्र त्रिपाठी) द्वारा संविधान विशेषज्ञ एंव वरिष्ठ अधिवक्ता डा. राजीव धवन तथा HC, Patna के सेवानिवृत्त न्यायधीश एंव वरिष्ठ अधिवक्ता माननीय वी. एन. सिन्हा के निर्देशन में बिहार सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा उठाये गये सभी तथ्यों का जबाब माननीय उच्चतम न्यायालय में ससमय एंव अनुकूल वातावरण में प्रस्तुत किया जायेगा। साथियों, प्रस्तुत न्यायिक महासंघर्ष {SLP (C) - 000020 /2018} का तात्कालिक स्तर , BSTSC द्वारा वर्ष 2013 से की गयी न्यायिक संघर्ष एंव silent तपस्या का परिणाम है। अतः इस न्यायिक महासंघर्ष की दुकानदारी किसी भी स्तर पर नहीं होने दी जायेगी। पिछले दिनों, मैं कई बार यह दुहरा चुका हूँ कि मेरी नजर सिर्फ बिहार सरकार एंव भारत सरकार द्वारा तैयार की गई रणनीतियों पर ही नहीं बल्कि 108 शिक्षक समूह, जो प्रस्तुत न्यायिक महासंघर्ष में प्रतीवादी पार्टी बने हैं, उनके कारगुजारियों पर भी है। उपलब्ध संसाधनों के मद्देनजर बेहतर विकल्प के साथ आप सभी के द्वारा समर्पित सहयोग राशि का समुचित सदुपयोग करते हुए वर्तमान न्यायिक महासंघर्ष में विजय प्राप्त करने का हर संभव प्रयास किया जायेगा। अतः वैसे सभी नियोजित शिक्षक साथियों, जिनको बिहार माध्यमिक शिक्षक संघर्ष समिति (BSTSC) द्वारा संचालित न्यायिक महासंघर्ष के प्रति आस्था हैं, उन सबसे यह निवेदन है कि आप हमें प्रति सुनवाई प्रति नियोजित शिक्षक, कम से कम 1,000/- अवश्य समर्पित करें ताकि नियोजन रुपी असंवैधानिक दासता का समूल उन्मूलन किया जा सके। इस सन्दर्भ में मै आप सबको आश्वस्त कर देना चाहता हूँ कि आपके द्वारा समर्पित सहयोग राशि की कुल रकम, विजयोत्सव के पश्चात पहली मासिक वृद्धि में अवश्य सामंजित हो जायेगी। BSTSC या BTSC की कार्यकारिणी (State Executive Council & State Advisory Council) के वैसे माननीय सदस्य, जिनको संघर्ष समिति द्वारा संचालित न्यायिक महासंघर्ष के प्रति अनास्था है, उनसे नम्र निवेदन है कि वे कृपया अपने आस्था वाले समूह को ही अपना सहयोग एंव अपनी सक्रियता समर्पित करें। BSTSC & BTSC के संघर्ष के प्रति अनास्था रखने वाले प्रबुद्ध एंव माननीय कार्यकारी सदस्यों से मेरी अपील है कि वे अपने अन्तःकरण एंव बौद्धिक स्तर पर आये बदलाव या परिवर्तन की सूचना, मेरे व्यक्तिगत नम्बर पर अवश्य संप्रेषित करें ताकि संघर्ष समिति, भविष्य में उनसे किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा नहीं रखें। मै, यहाँ, यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मै तथा मेरी संघर्ष समिति (BSTSC & BTSC) की प्रतिबद्धता नियोजन उन्मूलन से है, किसी खास व्यक्ति, किसी खास सदस्य या किसी खास सदस्य समूह को प्रसन्न या खुश करने से नहीं। सहयोग समर्पित करने वाले सभी नियोजित शिक्षकों को मै यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि नियोजन उन्मूलन के वर्तमान न्यायिक महाभियान में यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं अकेले भी खड़ा रहकर इस महाभियान को सफल बनाने का हर संभव प्रयास करुँगा!
Sunday, August 12, 2018
Saturday, August 11, 2018
Nios d.el.ed paper 501,502,503,504 and 505 exam date announced
NIOS प्रशिक्षु शिक्षक कृप्या ध्यान दें।*👇👇
सभी साथियों को *मृतुन्जय कुमार* का नमस्कार 🙏🙏
❗ *अति आवश्यक सूचना* ❗
http://dled.nios.ac.in/
*D.el.ed द्वितीय सेमेस्टर परीक्षा का date हुआ फिक्स। 25 september से 29 september तक आयोजित होगी परीक्षा*
*25 सितंबर 18 को 501*
*26 सितंबर 18 को 502*
*27 सितंबर 18 को 503*
*28 सितंबर 18 को 504*
*29 सितंबर 18 को 505 मॉड्यूल का परीक्षा होगा ।*
Dear All
As per instructions of the Hon'ble Chairman, it is informed that the 2nd semester D.El.Ed examination scheduled in September 2018 will held on the following dates:-
501 25/09/18
502 26/09/18
503 27/09/18
504 28/09/18
505 29/09/18
The above dates are fixed and may be shared to all concerned particularly with the states in Confirmation of the exam centres
acknowledge and Confirmation. DD (Evaluation ) may kindly issue necessary notification in this regard for information of all and uploading on D.El.Ed portal for information of all trainee teachers.
सभी साथियों को *मृतुन्जय कुमार* का नमस्कार 🙏🙏
❗ *अति आवश्यक सूचना* ❗
http://dled.nios.ac.in/
*D.el.ed द्वितीय सेमेस्टर परीक्षा का date हुआ फिक्स। 25 september से 29 september तक आयोजित होगी परीक्षा*
*25 सितंबर 18 को 501*
*26 सितंबर 18 को 502*
*27 सितंबर 18 को 503*
*28 सितंबर 18 को 504*
*29 सितंबर 18 को 505 मॉड्यूल का परीक्षा होगा ।*
Dear All
As per instructions of the Hon'ble Chairman, it is informed that the 2nd semester D.El.Ed examination scheduled in September 2018 will held on the following dates:-
501 25/09/18
502 26/09/18
503 27/09/18
504 28/09/18
505 29/09/18
The above dates are fixed and may be shared to all concerned particularly with the states in Confirmation of the exam centres
acknowledge and Confirmation. DD (Evaluation ) may kindly issue necessary notification in this regard for information of all and uploading on D.El.Ed portal for information of all trainee teachers.
Monday, August 6, 2018
शिक्षकों का मौलिक अधिकार समान काम के बदले समान वेतन, सुप्रीम कोर्ट और भारतीय संविधान
1. समान कार्य के लिए समान वेतन की अवधारणा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39d में वर्णित है।
2. यद्यपि संविधान बनाने वालों ने लिखा है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, फिर भी अनुच्छेद 39d का आधार मौलिक अधिकार से संबद्ध अनुच्छेद 14 और 16 होने के कारण चुनौती दिया जाता रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने द्वारा पारित एक न्यायादेश में कहा है।
3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान कार्य के लिए समान वेतन के संदर्भ में एक मानदंड तय किया गया है अर्थात पैरामीटर्स तय किया गया है जो न्यायादेश के बिंदु 42 पर अंकित है। इसी पैरामीटर्स की कसौटी पर बिहार के नियमित एवं नियोजित शिक्षकों के समान कार्यो की जांच माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा की गई है और पाया गया है कि नियोजित शिक्षक भी हूबहू वही कार्य करते हैं जो रेगुलर टीचर करते हैं ।
अतः माननीय उच्च न्यायालय पटना ने नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति समान कार्य के लिए समान वेतन देने का न्यायादेश पारित किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने द्वारा निर्धारित पैरामीटर्स को निरस्त नहीं करेगा यह मेरा विश्वास है।
बिहार में नियोजित शिक्षक और नियमित शिक्षक के द्वारा संपादित कार्यों में कोई अंतर भी नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी इस तथ्य को अपनी संज्ञान में लिया है ।
4. बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में कहीं कोई ऐसा हलफनामा दाखिल नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो या यह कहा गया हो कि बिहार के नियोजित शिक्षक नियमित शिक्षक की तुलना में इन्फीरियर हैं ।अतः नियोजित शिक्षकों की योग्यता के संदर्भ में किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा करना असंवैधानिक और अमान्य है जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना ने अपने आदेश में अंकित किया है।
5. एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए कहती है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G के शिड्यूल 17 में वर्णित प्रावधान के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा इन शिक्षकों का नियोजन किया गया है।
इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय पटना का कहना है कि बिहार सरकार का यह कथन हंड्रेड परसेंट असत्य है ।मानव संसाधन विकास विभाग पटना के द्वारा 2006 की नियमावली निर्मित है न की पंचायती राज के द्वारा ।यहां तक की नियोजित शिक्षकों को 2015 में जो वेतनमान दिया गया है वह भी बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के द्वारा प्रदत है न की पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा। इस तरह नियोजित शिक्षकों का शोषण( भारतीय संविधान की धारा 23) किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार सरकार के शिक्षण संस्थान यदि पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा संचालित होते हैं तो बिहार सरकार ने किस संकल्प संख्या और अधिसूचना के तहत इन शिक्षण संस्थानों को पंचायती राज व्यवस्था को समर्पित किया है।
प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस घिनौने और असंवैधानिक आचरण के लिए दंड का भागीदार नहीं है?( हाई कोर्ट का आदेश बिंदु 52 विशेष दृष्टव्य है)
6. किसी कार्य के पारिश्रमिक( फ्रूट ऑफ लेबर) को कृत्रिम मानदंड के आधार पर अस्वीकार करना एक अपराध है और बिहार सरकार इस अपराध के लिए दोषी है ।समान कार्य संपादित करने वाले को समान मजदूरी ना दी जाए यह न्याय संगत नहीं है । यह एक असंवैधानिक कार्य है किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना ।
7. वित्त( धन) की दृष्टिकोण से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायादेश
A म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ रतलाम मुनिसिपलिटी बनाम वरदीचंद व अन्य(1980)4SCC तथा
B महात्मा गांधी बनाम भारतीय(2017)4SCC में यह आदेश पारित किया है कि धन के अभाव के कारण समान कार्य के लिए समान वेतन न दिया जाए इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में अंकित है ।यही कारण है कि अनेक बार माननीय न्यायमूर्ति नरीमन साहब ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में इंटरफेरेंस नहीं होगा ।आदेश यथावत रहेगा। यू0 यू0 ललित साहब ने भी सकारात्मक रूख अपना रखा है। उपर्युक्त के आलोक में मैं अपने प्रिय नियोजित सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे निराशा के बादल को फाड़कर सफलता रूपी रश्मि की किरणों को आलिंगन करें। विश्वास से भरकर नेतृत्व की मदद करें और उसमें विश्वास रखें ,सजग रहें।
Sunday, August 5, 2018
भारतीय संविधान नियोजित शिक्षक, संविदा कर्मी, हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट- मुद्दा समान काम के बदले समान वेतन
#एक #दृष्टि इधर भी..........
1. समान कार्य के लिए समान वेतन की अवधारणा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39d में वर्णित है।
2. यद्यपि संविधान बनाने वालों ने लिखा है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, फिर भी अनुच्छेद 39d का आधार मौलिक अधिकार से संबद्ध अनुच्छेद 14 और 16 होने के कारण चुनौती दिया जाता रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने द्वारा पारित एक न्यायादेश में कहा है कि--
" equal pay for equal work is not expressly declared by the constitution as a fundamental rights but in view of the directive principle of State Policy and contain in the article 39d of the Constitution equal pay for equal work has assume the state of Fundamental Rights in service jurisprudence having regard to the constitution mandate of equality in Article 14 and 16 of the constitution".
3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान कार्य के लिए समान वेतन के संदर्भ में एक मानदंड तय किया गया है अर्थात पैरामीटर्स तय किया गया है जो न्यायादेश के बिंदु 42 पर अंकित है। इसी पैरामीटर्स की कसौटी पर बिहार के नियमित एवं नियोजित शिक्षकों के समान कार्यो की जांच माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा की गई है और पाया गया है कि नियोजित शिक्षक भी हूबहू वही कार्य करते हैं जो रेगुलर टीचर करते हैं ।
अतः माननीय उच्च न्यायालय पटना ने नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति समान कार्य के लिए समान वेतन देने का न्यायादेश पारित किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने द्वारा निर्धारित पैरामीटर्स को निरस्त नहीं करेगा यह मेरा विश्वास है।
बिहार में नियोजित शिक्षक और नियमित शिक्षक के द्वारा संपादित कार्यों में कोई अंतर भी नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी इस तथ्य को अपनी संज्ञान में लिया है ।
4. बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में कहीं कोई ऐसा हलफनामा दाखिल नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो या यह कहा गया हो कि बिहार के नियोजित शिक्षक नियमित शिक्षक की तुलना में इन्फीरियर हैं ।अतः नियोजित शिक्षकों की योग्यता के संदर्भ में किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा करना असंवैधानिक और अमान्य है जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना ने अपने आदेश में अंकित किया है।
5. एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए कहती है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G के शिड्यूल 17 में वर्णित प्रावधान के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा इन शिक्षकों का नियोजन किया गया है।
इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय पटना का कहना है कि बिहार सरकार का यह कथन हंड्रेड परसेंट असत्य है ।मानव संसाधन विकास विभाग पटना के द्वारा 2006 की नियमावली निर्मित है न की पंचायती राज के द्वारा ।यहां तक की नियोजित शिक्षकों को 2015 में जो वेतनमान दिया गया है वह भी बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के द्वारा प्रदत है न की पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा। इस तरह नियोजित शिक्षकों का शोषण( भारतीय संविधान की धारा 23) किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार सरकार के शिक्षण संस्थान यदि पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा संचालित होते हैं तो बिहार सरकार ने किस संकल्प संख्या और अधिसूचना के तहत इन शिक्षण संस्थानों को पंचायती राज व्यवस्था को समर्पित किया है।
प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस घिनौने और असंवैधानिक आचरण के लिए दंड का भागीदार नहीं है?( हाई कोर्ट का आदेश बिंदु 52 विशेष दृष्टव्य है)
52. So far as the validity of the Rule 8 of 2006 Rules, I find that the State Government purportedly framed Rule in furtherance of 73rd and 74th amendment of the Constitution and in furtherance of item 17 of schedule 11 and item no. 13 of schedule 12 but in the totality of the fact situation I am of the considered view that purported exercise was only a colourable exercise of power by the State of Bihar, firstly that in the name of exercising legislative power under Rule 243(b) and 243(W) read with item No. 17 of 11th schedule and item no. 13 of 12th schedule, 2006 Rules have been framed but the State Government has not authorized the local self government to set up schools, elementary, middle, secondary and higher secondary. It has not even authorized the local self government to prescribe the service condition. In the totality of the fact situation, I find that #at #every #stage #the #State #Government #is #taking #decision #with #regard #to #prescribing #the #service #condition, #fixing #qualification, #pay #scale #and #the #Directorate #of #Primary #Education #and #secondary #education is supervising the entire education system from primary to higher secondary level which is evident from 2006 Rules itself. The rule was framed by the Human Resources Development Department and not by the Panchayati Raj Department. The resolution granting pay scale and pay band to the Niyojit teacher was also issued by the State Government. If I lift the veil I find that the State Government is the real player regulating the entire service conditions of the Niyojit teacher and the petitioners are in fact the employee of the State Government continuing in the Natinalised School. I also find that the action of the respondents in creating a class of Niyojit teacher for imparting instruction in the same nationalized school on fixed remuneration under Clause 8 of the Rule is a kind of exploitation impermissible under Article 23 of the Constitution.
6. किसी कार्य के पारिश्रमिक( फ्रूट ऑफ लेबर) को कृत्रिम मानदंड के आधार पर अस्वीकार करना एक अपराध है और बिहार सरकार इस अपराध के लिए दोषी है ।समान कार्य संपादित करने वाले को समान मजदूरी ना दी जाए यह न्याय संगत नहीं है । यह एक असंवैधानिक कार्य है किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना ।
7. वित्त( धन) की दृष्टिकोण से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायादेश
A म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ रतलाम मुनिसिपलिटी बनाम वरदीचंद व अन्य(1980)4SCC तथा
B महात्मा गांधी बनाम भारतीय(2017)4SCC में यह आदेश पारित किया है कि धन के अभाव के कारण समान कार्य के लिए समान वेतन न दिया जाए इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में अंकित है ।यही कारण है कि अनेक बार माननीय न्यायमूर्ति नरीमन साहब ने कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में इंटरफेरेंस नहीं होगा ।आदेश यथावत रहेगा। उपर्युक्त के आलोक में मैं अपने प्रिय नियोजित सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे निराशा के बादल को फाड़कर सफलता रूपी रश्मि की किरणों को आलिंगन करें। विश्वास से भरकर पूर्व की भांति नेतृत्व की मदद करें और उसमें विश्वास रखें ,सजग रहें। आप जिस भी संघ में विश्वास करते हो ,आप जिस भी संघ की कार्यप्रणाली और वकील से संतुष्ट हो उस संघ को दिल खोलकर आर्थिक मदद करें ध्यान रखा जाए कि किसी भी संघ की बुराई ना की जाए क्योंकि ऐसा करना आत्मघाती राह है।
1. समान कार्य के लिए समान वेतन की अवधारणा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39d में वर्णित है।
2. यद्यपि संविधान बनाने वालों ने लिखा है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, फिर भी अनुच्छेद 39d का आधार मौलिक अधिकार से संबद्ध अनुच्छेद 14 और 16 होने के कारण चुनौती दिया जाता रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने द्वारा पारित एक न्यायादेश में कहा है कि--
" equal pay for equal work is not expressly declared by the constitution as a fundamental rights but in view of the directive principle of State Policy and contain in the article 39d of the Constitution equal pay for equal work has assume the state of Fundamental Rights in service jurisprudence having regard to the constitution mandate of equality in Article 14 and 16 of the constitution".
3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान कार्य के लिए समान वेतन के संदर्भ में एक मानदंड तय किया गया है अर्थात पैरामीटर्स तय किया गया है जो न्यायादेश के बिंदु 42 पर अंकित है। इसी पैरामीटर्स की कसौटी पर बिहार के नियमित एवं नियोजित शिक्षकों के समान कार्यो की जांच माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा की गई है और पाया गया है कि नियोजित शिक्षक भी हूबहू वही कार्य करते हैं जो रेगुलर टीचर करते हैं ।
अतः माननीय उच्च न्यायालय पटना ने नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति समान कार्य के लिए समान वेतन देने का न्यायादेश पारित किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने द्वारा निर्धारित पैरामीटर्स को निरस्त नहीं करेगा यह मेरा विश्वास है।
बिहार में नियोजित शिक्षक और नियमित शिक्षक के द्वारा संपादित कार्यों में कोई अंतर भी नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी इस तथ्य को अपनी संज्ञान में लिया है ।
4. बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में कहीं कोई ऐसा हलफनामा दाखिल नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो या यह कहा गया हो कि बिहार के नियोजित शिक्षक नियमित शिक्षक की तुलना में इन्फीरियर हैं ।अतः नियोजित शिक्षकों की योग्यता के संदर्भ में किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा करना असंवैधानिक और अमान्य है जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना ने अपने आदेश में अंकित किया है।
5. एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए कहती है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G के शिड्यूल 17 में वर्णित प्रावधान के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा इन शिक्षकों का नियोजन किया गया है।
इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय पटना का कहना है कि बिहार सरकार का यह कथन हंड्रेड परसेंट असत्य है ।मानव संसाधन विकास विभाग पटना के द्वारा 2006 की नियमावली निर्मित है न की पंचायती राज के द्वारा ।यहां तक की नियोजित शिक्षकों को 2015 में जो वेतनमान दिया गया है वह भी बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के द्वारा प्रदत है न की पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा। इस तरह नियोजित शिक्षकों का शोषण( भारतीय संविधान की धारा 23) किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार सरकार के शिक्षण संस्थान यदि पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा संचालित होते हैं तो बिहार सरकार ने किस संकल्प संख्या और अधिसूचना के तहत इन शिक्षण संस्थानों को पंचायती राज व्यवस्था को समर्पित किया है।
प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस घिनौने और असंवैधानिक आचरण के लिए दंड का भागीदार नहीं है?( हाई कोर्ट का आदेश बिंदु 52 विशेष दृष्टव्य है)
52. So far as the validity of the Rule 8 of 2006 Rules, I find that the State Government purportedly framed Rule in furtherance of 73rd and 74th amendment of the Constitution and in furtherance of item 17 of schedule 11 and item no. 13 of schedule 12 but in the totality of the fact situation I am of the considered view that purported exercise was only a colourable exercise of power by the State of Bihar, firstly that in the name of exercising legislative power under Rule 243(b) and 243(W) read with item No. 17 of 11th schedule and item no. 13 of 12th schedule, 2006 Rules have been framed but the State Government has not authorized the local self government to set up schools, elementary, middle, secondary and higher secondary. It has not even authorized the local self government to prescribe the service condition. In the totality of the fact situation, I find that #at #every #stage #the #State #Government #is #taking #decision #with #regard #to #prescribing #the #service #condition, #fixing #qualification, #pay #scale #and #the #Directorate #of #Primary #Education #and #secondary #education is supervising the entire education system from primary to higher secondary level which is evident from 2006 Rules itself. The rule was framed by the Human Resources Development Department and not by the Panchayati Raj Department. The resolution granting pay scale and pay band to the Niyojit teacher was also issued by the State Government. If I lift the veil I find that the State Government is the real player regulating the entire service conditions of the Niyojit teacher and the petitioners are in fact the employee of the State Government continuing in the Natinalised School. I also find that the action of the respondents in creating a class of Niyojit teacher for imparting instruction in the same nationalized school on fixed remuneration under Clause 8 of the Rule is a kind of exploitation impermissible under Article 23 of the Constitution.
6. किसी कार्य के पारिश्रमिक( फ्रूट ऑफ लेबर) को कृत्रिम मानदंड के आधार पर अस्वीकार करना एक अपराध है और बिहार सरकार इस अपराध के लिए दोषी है ।समान कार्य संपादित करने वाले को समान मजदूरी ना दी जाए यह न्याय संगत नहीं है । यह एक असंवैधानिक कार्य है किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना ।
7. वित्त( धन) की दृष्टिकोण से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायादेश
A म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ रतलाम मुनिसिपलिटी बनाम वरदीचंद व अन्य(1980)4SCC तथा
B महात्मा गांधी बनाम भारतीय(2017)4SCC में यह आदेश पारित किया है कि धन के अभाव के कारण समान कार्य के लिए समान वेतन न दिया जाए इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में अंकित है ।यही कारण है कि अनेक बार माननीय न्यायमूर्ति नरीमन साहब ने कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में इंटरफेरेंस नहीं होगा ।आदेश यथावत रहेगा। उपर्युक्त के आलोक में मैं अपने प्रिय नियोजित सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे निराशा के बादल को फाड़कर सफलता रूपी रश्मि की किरणों को आलिंगन करें। विश्वास से भरकर पूर्व की भांति नेतृत्व की मदद करें और उसमें विश्वास रखें ,सजग रहें। आप जिस भी संघ में विश्वास करते हो ,आप जिस भी संघ की कार्यप्रणाली और वकील से संतुष्ट हो उस संघ को दिल खोलकर आर्थिक मदद करें ध्यान रखा जाए कि किसी भी संघ की बुराई ना की जाए क्योंकि ऐसा करना आत्मघाती राह है।
Saturday, August 4, 2018
सुप्रीम कोर्ट में समान काम समान वेतन का मामला और विभिन्न सरकारों की शिक्षक नियोजन प्रक्रिया
सरकार के नीचता का कोई पैमाना नहीं हो सकता यह बात सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दिए सप्लिमेंट्री एफिडेविट से साफ हो जाती है।।।।
जरा गौर करें
◆ प्राइमरी स्कूल में सरकार ने 1971 से शिक्षकों को नियमित किया,उसके बाद जितने भी आज जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान और प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय वो पहले मैट्रिक के बाद BTC ( बेसिक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट) या बेसिक ट्रेंड ट्रेनिंग कराने के लिए थे और उससे पास होने वाले शिक्षक की लिस्ट तैयार होती थी फिर बाद में शिक्षकों के रिक्त हुए पद पर बहाली की जाती थी। कोई एग्जाम कंडक्ट नहीं होता था।।
◆केवल 1994 और 1999 में लगभग 25000 शिक्षक ही BPSC के द्वारा बहाल हुए वो भी इंटर और अनट्रेंड योग्यता के साथ।!!!! सवाल यह है कि अलग अलग सरकार ने अपने हिसाब से शिक्षक बहाली का अलग अलग पैमाना चुना है फिर एक पैमाना सर्वश्रेष्ठ कैसे हो गया????
◆सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केवल जो BPSC से शिक्षक बने हैं केवल उन्हें ही सरकार ने नियमित बनाया है, ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि BPSC से पहले DIET और PTEC से पढ़ कर निकलने वाले भी शिक्षक भी नियमित शिक्षक ही हैं।
◆ 29 राज्यों और देश को शामिल करते हुए एक बात कहनी है कि 2010 RTE लागू होने के बाद और लागू होने के पहले कहाँ कहाँ राज्य स्तरीय सर्विस कमीशन और UPSC ने शिक्षकों के लिए एग्जाम कंडक्ट किया था या है और उसी आधार पर बहाली हुई हो??????
◆ पंचायती राज संस्थाएँ , योग्यता ये सारी बातें उलझाऊ बिंदु है बस और कुछ नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य के अस्थाई कर्मचारियों को SWSP देते हुए कहा था कि केवल Nature of job and Responsibility of job एक जैसा होना चाहिए।।।।।
◆ कठिन परीक्षा क्या होता है शायद यह सरकार ही बता सकती है।। नेट की परीक्षा पहले UGC लेती थी फिर CBSE को दिया गया इसमें कौन कठिन परीक्षा लेता है या था अब तो हर समय यही बहस होगी जैसे BSEB ने TET लिया या BPSC ने जो शिक्षक के लिए परीक्षा आयोजित की , आप लोग बतायें भैया कौन कठिन था????
◆घबराएँ बिल्कुल नहीं ये सारी दलीलें सरकार की है ,सरकार की बात सुन के ही थोड़े न डिसीजन ही जाना है जैसे हाई कोर्ट में नहीं हुआ........
◆ याद करें पटना हाई कोर्ट में जो दलीलें दी गई थी और अब की दलीलों में कितना फर्क है सरकार की हार होनी तय है।।।।।।
◆ सुप्रीम कोर्ट केवल संविधान के मौलिक अधिकार ( समानता) और संवैधानिक अधिकार( राज्यों को अधिकार है कि अपने वित्तिय संसाधनों को देखते हुए कर्मचारियों का वेतन तय कर सकती है) के बीच जंग होगी।।।।।
जरा गौर करें
◆ प्राइमरी स्कूल में सरकार ने 1971 से शिक्षकों को नियमित किया,उसके बाद जितने भी आज जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान और प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय वो पहले मैट्रिक के बाद BTC ( बेसिक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट) या बेसिक ट्रेंड ट्रेनिंग कराने के लिए थे और उससे पास होने वाले शिक्षक की लिस्ट तैयार होती थी फिर बाद में शिक्षकों के रिक्त हुए पद पर बहाली की जाती थी। कोई एग्जाम कंडक्ट नहीं होता था।।
◆केवल 1994 और 1999 में लगभग 25000 शिक्षक ही BPSC के द्वारा बहाल हुए वो भी इंटर और अनट्रेंड योग्यता के साथ।!!!! सवाल यह है कि अलग अलग सरकार ने अपने हिसाब से शिक्षक बहाली का अलग अलग पैमाना चुना है फिर एक पैमाना सर्वश्रेष्ठ कैसे हो गया????
◆सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केवल जो BPSC से शिक्षक बने हैं केवल उन्हें ही सरकार ने नियमित बनाया है, ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि BPSC से पहले DIET और PTEC से पढ़ कर निकलने वाले भी शिक्षक भी नियमित शिक्षक ही हैं।
◆ 29 राज्यों और देश को शामिल करते हुए एक बात कहनी है कि 2010 RTE लागू होने के बाद और लागू होने के पहले कहाँ कहाँ राज्य स्तरीय सर्विस कमीशन और UPSC ने शिक्षकों के लिए एग्जाम कंडक्ट किया था या है और उसी आधार पर बहाली हुई हो??????
◆ पंचायती राज संस्थाएँ , योग्यता ये सारी बातें उलझाऊ बिंदु है बस और कुछ नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य के अस्थाई कर्मचारियों को SWSP देते हुए कहा था कि केवल Nature of job and Responsibility of job एक जैसा होना चाहिए।।।।।
◆ कठिन परीक्षा क्या होता है शायद यह सरकार ही बता सकती है।। नेट की परीक्षा पहले UGC लेती थी फिर CBSE को दिया गया इसमें कौन कठिन परीक्षा लेता है या था अब तो हर समय यही बहस होगी जैसे BSEB ने TET लिया या BPSC ने जो शिक्षक के लिए परीक्षा आयोजित की , आप लोग बतायें भैया कौन कठिन था????
◆घबराएँ बिल्कुल नहीं ये सारी दलीलें सरकार की है ,सरकार की बात सुन के ही थोड़े न डिसीजन ही जाना है जैसे हाई कोर्ट में नहीं हुआ........
◆ याद करें पटना हाई कोर्ट में जो दलीलें दी गई थी और अब की दलीलों में कितना फर्क है सरकार की हार होनी तय है।।।।।।
◆ सुप्रीम कोर्ट केवल संविधान के मौलिक अधिकार ( समानता) और संवैधानिक अधिकार( राज्यों को अधिकार है कि अपने वित्तिय संसाधनों को देखते हुए कर्मचारियों का वेतन तय कर सकती है) के बीच जंग होगी।।।।।
Friday, August 3, 2018
क्या गुणवत्तापुर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों को समान वेतन देना अवश्यक नहीं है, सुप्रीम कोर्ट में मामले पर सुनवाई हुई
आर्थिक कमी के कारण आजादी के 70 वर्षों बाद भी शिक्षा आमजन की पहुंच से दूर, राज्य सरकार उसे जन-जन तक पहुंचाने का कर रही प्रयास : सरकारी वकील
आम जन तक शिक्षा का प्रसार नहीं होने का कारण केवल वित्तीय कमी ही नहीं बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के साथ ही अन्य कारण भी :सुप्रीम कोर्ट
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आज की सुनवाई का सारांश यही है कि राज्य सरकार के अधिवक्ता आज पूरे सुनवाई के दौरान बस यही बतलाने में लगे रहे कि वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य शिक्षा का हर व्यक्ति तक प्रसार करना है । अदालत ने इस पर टिप्पणी भी की कि प्रसार से ही हो जाएगा या इसमें गुणवत्ता भी होनी चाहिए ? तो अधिवक्ता ने यह कहा कि गुणवत्ता भी हमारा उद्देश्य है लेकिन हम इसको जन-जन तक प्रसारित करना चाहते हैं और यदि आर्थिक अधिभार अतिरिक्त बहन करना पड़ा तो निश्चित रूप से प्रभावित होगा । सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि केंद्र सरकार 60 % अनुदान देती है और उसमें 40% की हिस्सेदारी राज्य सरकार की होती है। पहले हिस्सेदारी 75:25 की थी जो आज 60:40 का रह गया है।
सरकारी अधिवक्ता बार बार इस बात को अदालत में दुहराते रहे कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी शिक्षा हर व्यक्ति की पहुंच से बाहर है और आज इसके प्रसार की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने एक बार टिप्पणी भी की क्या बार-बार बीते दिनों की याद दिला रहे हैं कि उस समय शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ। इसमें आप असफल हैं , इसका एक मात्र कारण वित्तीय कमी ही नहीं है बल्कि इसका और भी कारण है जिसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, बेहतर योजनाओं की कमी व अन्य कारण भी हैं । इसलिए केवल पैसे की कमी का बहाना बनाना उचित नहीं होगा । इस पर सरकार के वकील ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम को पढ़कर अदालत को सुनाया । इसके साथ ही लॉ कमीशन, पार्लियामेंट्री कमेटी आदि के सुझाव और निर्णय का उल्लेख किया और दिनभर नियमावली के माध्यम से अदालत को गुमराह करने की असफल कोशिश की । आज दिनभर यही एक ही बात दोहराते रह गए। अभी राज्य सरकार की ओर से श्याम दीवान, मुकुल रोहतगी, गोपाल सुब्रमण्यम आदि बोलेंगे । उसके बाद भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल भी अपना पक्ष रखेंगे। वह आज भी कोर्ट में मौजूद थे लेकिन उन्हें बोलने का समय नहीं मिल सका। सरकार का पक्ष समाप्त होने के बाद ही हम शिक्षकों के अधिवक्ताओं की बारी आएगी। तब हमारे अधिवक्ता सरकारी वकील द्वारा दी गई थोथदलिलों की धज्जियां उड़ायेंगे। हम पूरी तैयारी के साथ नेतृत्वकर्ता जमे हैं । पूरी तैयारी के साथ हैं और सरकारी वकील के लिए संवैधानिक प्रावधानों, पूर्व के फैसलों एवं पर्याप्त तर्कों के साथ पूरी तैयारी में हैं । आप सभी चट्टानी एकता बनाए रखें। एक दूसरे को सहयोग प्रदान करें । आप सब के सहयोग से ही हम इस जंग को आसानी से जीत सकेंगे । फैसला आपके पक्ष में होगा जिसे कोई रोक नहीं सकता है , भले ही कुछ समय लगे। भले ही हमें परेशानी हो लेकिन इसका परिणाम सुखद होगा ,ऐसा मेरा विश्वास है ।
आम जन तक शिक्षा का प्रसार नहीं होने का कारण केवल वित्तीय कमी ही नहीं बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के साथ ही अन्य कारण भी :सुप्रीम कोर्ट
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आज की सुनवाई का सारांश यही है कि राज्य सरकार के अधिवक्ता आज पूरे सुनवाई के दौरान बस यही बतलाने में लगे रहे कि वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य शिक्षा का हर व्यक्ति तक प्रसार करना है । अदालत ने इस पर टिप्पणी भी की कि प्रसार से ही हो जाएगा या इसमें गुणवत्ता भी होनी चाहिए ? तो अधिवक्ता ने यह कहा कि गुणवत्ता भी हमारा उद्देश्य है लेकिन हम इसको जन-जन तक प्रसारित करना चाहते हैं और यदि आर्थिक अधिभार अतिरिक्त बहन करना पड़ा तो निश्चित रूप से प्रभावित होगा । सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि केंद्र सरकार 60 % अनुदान देती है और उसमें 40% की हिस्सेदारी राज्य सरकार की होती है। पहले हिस्सेदारी 75:25 की थी जो आज 60:40 का रह गया है।
सरकारी अधिवक्ता बार बार इस बात को अदालत में दुहराते रहे कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी शिक्षा हर व्यक्ति की पहुंच से बाहर है और आज इसके प्रसार की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने एक बार टिप्पणी भी की क्या बार-बार बीते दिनों की याद दिला रहे हैं कि उस समय शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ। इसमें आप असफल हैं , इसका एक मात्र कारण वित्तीय कमी ही नहीं है बल्कि इसका और भी कारण है जिसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, बेहतर योजनाओं की कमी व अन्य कारण भी हैं । इसलिए केवल पैसे की कमी का बहाना बनाना उचित नहीं होगा । इस पर सरकार के वकील ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम को पढ़कर अदालत को सुनाया । इसके साथ ही लॉ कमीशन, पार्लियामेंट्री कमेटी आदि के सुझाव और निर्णय का उल्लेख किया और दिनभर नियमावली के माध्यम से अदालत को गुमराह करने की असफल कोशिश की । आज दिनभर यही एक ही बात दोहराते रह गए। अभी राज्य सरकार की ओर से श्याम दीवान, मुकुल रोहतगी, गोपाल सुब्रमण्यम आदि बोलेंगे । उसके बाद भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल भी अपना पक्ष रखेंगे। वह आज भी कोर्ट में मौजूद थे लेकिन उन्हें बोलने का समय नहीं मिल सका। सरकार का पक्ष समाप्त होने के बाद ही हम शिक्षकों के अधिवक्ताओं की बारी आएगी। तब हमारे अधिवक्ता सरकारी वकील द्वारा दी गई थोथदलिलों की धज्जियां उड़ायेंगे। हम पूरी तैयारी के साथ नेतृत्वकर्ता जमे हैं । पूरी तैयारी के साथ हैं और सरकारी वकील के लिए संवैधानिक प्रावधानों, पूर्व के फैसलों एवं पर्याप्त तर्कों के साथ पूरी तैयारी में हैं । आप सभी चट्टानी एकता बनाए रखें। एक दूसरे को सहयोग प्रदान करें । आप सब के सहयोग से ही हम इस जंग को आसानी से जीत सकेंगे । फैसला आपके पक्ष में होगा जिसे कोई रोक नहीं सकता है , भले ही कुछ समय लगे। भले ही हमें परेशानी हो लेकिन इसका परिणाम सुखद होगा ,ऐसा मेरा विश्वास है ।
शिक्षक नियोजन नियमावली और सुप्रीम कोर्ट में नियोजित शिक्षकों की समान काम के बदले समान वेतन का मामला
*02.08.18 को माननीय उच्चतम न्यायालय में हुई सुनवाई का सारांश .....*
न्यायालय में हमलोगों के याचिका पर सुनवाई 10:56 पर शुरू हुई जो लंच समय तक चलता रहा। आज भी *बिहार सरकार के अधिवक्ता राकेश चंद्र द्विवेदी के तरफ से बहस की शुरुआत की गई।* जिसमें लगभग डेढ़ घंटे में अपना पक्ष पूरा किया गया। जो *शिक्षा अधिकार अधिनियम* से शुरू हुआ। जिसके तहत उन्होंने यह स्वीकार किया कि सभी *नियोजित शिक्षकों का संवर्ग स्थायी कर दिया गया है।* परंतु नियमित शिक्षकों से *अलग कैडर* के हैं। सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को नियोजित शिक्षकों के वेतन में एक सौ प्रतिशत वृद्धि दिखाने के लिए अपनी पुरानी बातों को दुहराते हुए कहा कि *2002/2003* में शिक्षा मित्र की नियुक्ति की गई तब पंद्रह सौ दिया जाता था। *तत्पश्चात 2006 में उनको नियोजित करते हुए उनका वेतन 4000/5000 किया गया।* जिसे समय समय पर बढाया जाता रहा है। तथा 2015 से इनको वेतनमान का लाभ दिया गया है। *जिसमें 01.04.2017 से सातवें वेतन का लाभ दिया जा रहा है।* इसी बीच कोर्ट ने कहा कि *शिक्षा मित्रों की संख्या कितनी है?*
इस पर सरकारी वकील सहित प्रधान सचिव शिक्षा विभाग, आर के महाजन संख्या पता करने हलकान होने लगे जिसे बाद में *बिहार सरकार के तरफ से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवाने ने स्पष्ट किया।* शिक्षा मित्र के चर्चा पर माननीय न्यायाधीश उदय उमेश ललित जी ने पूछा
जब महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने इनको *पाँच वर्ष के बाद पूर्ण शिक्षक का दर्जा दिया तो बिहार ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा है?* जिसके जबाव में सरकार ने कहा कि सबको 2006 में एक नए नियमावली के तहत नियोजित शिक्षक बना दिया गया। एवं तब से *प्रारंभिक से लेकर माध्यमिक तक की नियुक्ति 2006 की नियमावली से की जाने लगी है।**इनलोगों को पूर्ण वेतनमान देने से पूरे बिहार का *विकास बंद* हो जाएगा।
राकेश द्विवेदी जी द्वारा कुछ और तथ्यों को रखने के बाद *बिहार सरकार का पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान ने मोर्चा संभाला* और आते ही काफी *आक्रमक* तरीके से बहस करने लगे। जिसमें उनके द्वारा भी लगभग वही सब बातें दुहराई गई। *श्याम दिवान ने एक मास्टर स्ट्रोक चला* और बताया कि यह मामला पूरे देश का है जिसमें सबको शिक्षा देना संविधान का कर्तव्य है। समान काम समान भी संवैधानिक मुद्दा है *इसलिए इस मामले की सुनवाई के लिए इसे पूर्ण खंडपीठ में भेजा जाय।* एकबारगी तो ऐसा लगा कि मामला पूर्ण खंडपीठ को ना चला जाय तभी संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता *डा राजीव धवन* ने जोरदार विरोध किया। उन्होंने ने बताया की सरकार जानबूझकर मामले को उलझाने की कोशिश कर रही है। *समान काम समान वेतन के कई मामले पूर्व में जब उच्चतम न्यायालय द्वारा निष्पादित किए जा चुके हैं* तो इस मामले को संवैधानिक पीठ में भेजने का कोई औचित्य नहीं है। जिस पर न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए भारत सरकार के *अटार्नी जनरल के वेणुगोपाल जी से पूछा की क्या इसे संविधान पीठ में भेजा जाय?* इस पर मामले की गंभीरता एवं कानूनी पक्ष को देखते हुए *अटॉर्नी जनरल असहमति जताए* परंतु यह भी कहा कि अलग अलग नियुक्ति प्रक्रिया से नियुक्त लोगों का *वेतन अलग अलग रहेगा।*
इधर अपने बहस को श्याम दिवान आगे बढाते हुए बोले कि *बिहार जैसे पिछड़े राज्य में जहाँ शैक्षिक स्तर काफी कम है* खासकर लडकियों का तो बहुत ही कम है जिसमें विगत एक दशक से काफी सुधार किया गया है। *लड़कियों को मैट्रिक / इंटर पास करने पर दस हजार रुपए दिए जाते हैं।* लड़कियों की शिक्षा को उन्होंने बिहार की *जनसंख्या से जोड़ने का भी कार्य किया।*
इस तरह सरकारी वकील कोर्ट को अपनी बातों से प्रभावित करते रहने का आज लगातार तीसरे दिन प्रयास किया।
*लंच ब्रेक होने के कारण याचिका को पुनः मंगलवार* के लिए आगे बढाया गया। उस दिन संभवतः श्याम दिवान आधे /एक घंटे में अपनी बात पूरी कर लेंगे। *तत्पश्चात अटार्नी जनरल के वेणुगोपाल साहब भारत सरकार का पक्ष रखेंगे, जो एक दो घंटे का हो सकता है।* तदुपरांत हमलोगों के अधिवक्ता अभी तक सरकार के तरफ से कोर्ट में हमलोगों का पक्ष रखेंगे।
*उल्लेखनीय यह रहा कि माननीय न्यायाधीश ने पूछा की वित्तीय स्थिति कमजोर होने पर केवल शिक्षकों का ही वेतन कम क्यों किया गया है? आप आइ ए एस, इंजीनियर को ज्यादा वेतन दे सकते हैं और जो शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं उनको सबसे ज्यादा वेतन क्यों नहीं दिया जा सकता है?*
*कुल मिलाकर मिले जुले बहस* में सरकार के बहस को माननीय न्यायाधीशों द्वारा जब काउंटर किया जा रहा तब लगता है कि हम शिक्षकों का *पक्ष मजबूत है।* जब सहमति में गर्दन हिलाया जाता है तो *घडकने बढ़ जाती हैं।*
बहस के सही रूख का पता तब चलेगा जब *हमलोगों के अधिवक्ताओं* द्वारा अपना पक्ष रखा जाने लगा जाएगा और उस वक्त *न्यायाधीशों के काउंटर सवाल, सहमति एवं असहमति से 80% कोर्ट के रुख का पता चल पाएगा।* जिसके लिए हमलोगों को संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता *डा राजीव धवन जी एवं सी ए सुंदरम जी का कोर्ट में उपस्थित रहना आवश्यक है।* क्योंकि वो विगत छः सुनवाई से केस देख रहे हैं। एवं सरकार की एक एक चाल की काट कर रहे हैं, तथा अपनी बारी आने पर पूरी तरह से काटने के लिए तैयारी भी कर रहे हैं।
*यही सरकार नहीं चाह रही* है। इसलिए जब सीधे तारीख बढवाने का फंडा फेल हुआ तो रोज सुनवाई हो इसके लिए *दूसरा हथकंडा अपना रही है। सरकार रोज एक वकील बढा रहा है। अभी तक जहाँ *केवल बिहार सरकार* के तरफ से *मुकुल रोहतगी, गोपाल सुब्रमण्यम, राकेश चंद्र द्विवेदी, मदन द्विवेदी, श्याम दिवान जैसे धुरंधर एवं वरिष्ठ अधिवक्ता* पक्ष चुके हैं, सरकार इन पर पैसा पानी की तरह बहा रही है। वहीं बिहार सरकार के मदद में *भारत सरकार के अटार्नीय जनरल के वेणुगोपाल एवं सॉलिसिटर जनरल एम नरसिम्हा भाग ले चुके हैं।*
ऐसे दिग्गजों से कोर्ट में दो दो हाथ करने के लिए *हमलोगों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं का खड़े रहना जरूरी है।* जिसके लिए आप सभी साथियों से अपील है कि आर्थिक सहयोग करने में कोताही नहीं बरतेंगे।
*यदि SLP 20 जो उपेन्द्र राय जी के विरुद्ध सरकार द्वारा दायर किया गया है, वह जीतने पर ही सभी याचिकाओं पर जीत होगी