Friday, August 3, 2018

शिक्षक नियोजन नियमावली और सुप्रीम कोर्ट में नियोजित शिक्षकों की समान काम के बदले समान वेतन का मामला


*02.08.18 को माननीय उच्चतम न्यायालय में हुई सुनवाई का सारांश   .....*

न्यायालय में हमलोगों के याचिका पर सुनवाई 10:56 पर शुरू हुई जो लंच समय तक चलता रहा। आज भी *बिहार सरकार के अधिवक्ता राकेश चंद्र द्विवेदी के तरफ से बहस की शुरुआत की गई।* जिसमें लगभग डेढ़ घंटे में अपना पक्ष पूरा किया गया। जो *शिक्षा अधिकार अधिनियम* से शुरू हुआ। जिसके तहत उन्होंने यह स्वीकार किया कि सभी *नियोजित शिक्षकों का संवर्ग स्थायी कर दिया गया है।* परंतु नियमित शिक्षकों से *अलग कैडर* के हैं। सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को नियोजित शिक्षकों के वेतन में एक सौ प्रतिशत वृद्धि दिखाने के लिए अपनी पुरानी बातों को दुहराते हुए कहा कि *2002/2003* में शिक्षा मित्र की नियुक्ति की गई तब पंद्रह सौ दिया जाता था। *तत्पश्चात 2006 में उनको नियोजित करते हुए उनका वेतन 4000/5000 किया गया।* जिसे समय समय पर बढाया जाता रहा है। तथा 2015 से इनको वेतनमान का लाभ दिया गया है। *जिसमें 01.04.2017 से सातवें वेतन का लाभ दिया जा रहा है।* इसी बीच कोर्ट ने कहा कि *शिक्षा मित्रों की संख्या कितनी है?*
इस पर सरकारी वकील सहित प्रधान सचिव शिक्षा विभाग, आर के महाजन संख्या पता करने हलकान होने लगे जिसे बाद में *बिहार सरकार के तरफ से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवाने ने स्पष्ट किया।* शिक्षा मित्र के चर्चा पर माननीय न्यायाधीश उदय उमेश ललित जी ने पूछा
जब महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने इनको *पाँच वर्ष के बाद पूर्ण शिक्षक का दर्जा दिया तो बिहार ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा है?* जिसके जबाव में सरकार ने कहा कि सबको 2006 में एक नए नियमावली के तहत नियोजित शिक्षक बना दिया गया। एवं तब से *प्रारंभिक से लेकर माध्यमिक तक की नियुक्ति 2006 की नियमावली से की जाने लगी है।**इनलोगों को पूर्ण वेतनमान देने से पूरे बिहार का *विकास बंद* हो जाएगा।
राकेश द्विवेदी जी द्वारा कुछ और तथ्यों को रखने के बाद *बिहार सरकार का पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान ने मोर्चा संभाला* और आते ही काफी *आक्रमक* तरीके से बहस करने लगे। जिसमें उनके द्वारा भी लगभग वही सब बातें दुहराई गई। *श्याम दिवान ने एक मास्टर स्ट्रोक चला* और बताया कि यह मामला पूरे देश का है जिसमें सबको शिक्षा देना संविधान का कर्तव्य है। समान काम समान भी संवैधानिक मुद्दा है *इसलिए इस मामले की सुनवाई के लिए इसे पूर्ण खंडपीठ में भेजा जाय।* एकबारगी तो ऐसा लगा कि मामला पूर्ण खंडपीठ को ना चला जाय तभी संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता *डा राजीव धवन* ने जोरदार विरोध किया। उन्होंने ने बताया की सरकार जानबूझकर मामले को उलझाने की कोशिश कर रही है। *समान काम समान वेतन के कई मामले पूर्व में जब उच्चतम न्यायालय द्वारा निष्पादित किए जा चुके हैं* तो इस मामले को संवैधानिक पीठ में भेजने का कोई औचित्य नहीं है। जिस पर न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए भारत सरकार के *अटार्नी जनरल के वेणुगोपाल जी से पूछा की क्या इसे संविधान पीठ में भेजा जाय?* इस पर मामले की गंभीरता एवं कानूनी पक्ष को देखते हुए *अटॉर्नी जनरल असहमति जताए* परंतु यह भी कहा कि अलग अलग नियुक्ति प्रक्रिया से नियुक्त लोगों का *वेतन अलग अलग रहेगा।*
इधर अपने बहस को श्याम दिवान आगे बढाते हुए बोले कि  *बिहार जैसे पिछड़े राज्य में जहाँ शैक्षिक स्तर काफी कम है* खासकर लडकियों का तो बहुत ही कम है जिसमें विगत एक दशक से काफी सुधार किया गया है। *लड़कियों को मैट्रिक / इंटर पास करने पर दस हजार रुपए दिए जाते हैं।* लड़कियों की शिक्षा को उन्होंने बिहार की *जनसंख्या से जोड़ने का भी कार्य किया।*
इस तरह सरकारी वकील कोर्ट को अपनी बातों से प्रभावित करते रहने का आज लगातार तीसरे दिन प्रयास किया।
*लंच ब्रेक होने के कारण याचिका को पुनः मंगलवार* के लिए आगे बढाया गया। उस दिन संभवतः श्याम दिवान आधे /एक घंटे में अपनी बात पूरी कर लेंगे। *तत्पश्चात अटार्नी जनरल के वेणुगोपाल साहब भारत सरकार का पक्ष रखेंगे, जो एक दो घंटे का हो सकता है।* तदुपरांत हमलोगों के अधिवक्ता अभी तक सरकार के तरफ से कोर्ट में हमलोगों का पक्ष रखेंगे।
*उल्लेखनीय यह रहा कि माननीय न्यायाधीश ने पूछा की वित्तीय स्थिति कमजोर होने पर केवल शिक्षकों का ही वेतन कम क्यों किया गया है? आप आइ ए एस, इंजीनियर को ज्यादा वेतन दे सकते हैं और जो शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं उनको सबसे ज्यादा वेतन क्यों नहीं दिया जा सकता है?*

*कुल मिलाकर मिले जुले बहस* में सरकार के बहस को माननीय न्यायाधीशों द्वारा जब काउंटर किया जा रहा तब लगता है कि हम शिक्षकों का *पक्ष मजबूत है।* जब सहमति में गर्दन हिलाया जाता है तो *घडकने बढ़ जाती हैं।*
बहस के सही रूख का पता तब चलेगा जब *हमलोगों के अधिवक्ताओं* द्वारा अपना पक्ष रखा जाने लगा जाएगा और उस वक्त *न्यायाधीशों के काउंटर सवाल, सहमति एवं असहमति से 80% कोर्ट के रुख का पता चल पाएगा।* जिसके लिए हमलोगों को  संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता *डा राजीव धवन जी एवं सी ए सुंदरम जी का कोर्ट में उपस्थित रहना आवश्यक है।* क्योंकि वो विगत छः सुनवाई से केस देख रहे हैं। एवं सरकार की एक एक चाल की काट कर रहे हैं, तथा अपनी बारी आने पर पूरी तरह से काटने के लिए तैयारी भी कर रहे हैं।
*यही सरकार नहीं चाह रही* है। इसलिए जब सीधे तारीख बढवाने का फंडा फेल हुआ तो रोज सुनवाई हो इसके लिए *दूसरा हथकंडा अपना रही है। सरकार रोज एक वकील बढा रहा है। अभी तक जहाँ *केवल बिहार सरकार* के तरफ से *मुकुल रोहतगी, गोपाल सुब्रमण्यम, राकेश चंद्र द्विवेदी, मदन द्विवेदी, श्याम दिवान जैसे धुरंधर एवं वरिष्ठ अधिवक्ता* पक्ष चुके हैं, सरकार इन पर पैसा पानी की तरह बहा रही है। वहीं बिहार सरकार के मदद में *भारत सरकार के अटार्नीय जनरल के वेणुगोपाल एवं सॉलिसिटर जनरल एम नरसिम्हा भाग ले चुके हैं।*

ऐसे दिग्गजों से कोर्ट में दो दो हाथ करने के लिए *हमलोगों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं का खड़े रहना जरूरी है।* जिसके लिए आप सभी साथियों से अपील है कि आर्थिक सहयोग करने में कोताही नहीं बरतेंगे।
*यदि SLP 20 जो उपेन्द्र राय जी के विरुद्ध सरकार द्वारा दायर किया गया है, वह जीतने पर ही सभी याचिकाओं पर जीत होगी

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