#एक #दृष्टि इधर भी..........
1. समान कार्य के लिए समान वेतन की अवधारणा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39d में वर्णित है।
2. यद्यपि संविधान बनाने वालों ने लिखा है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, फिर भी अनुच्छेद 39d का आधार मौलिक अधिकार से संबद्ध अनुच्छेद 14 और 16 होने के कारण चुनौती दिया जाता रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने द्वारा पारित एक न्यायादेश में कहा है कि--
" equal pay for equal work is not expressly declared by the constitution as a fundamental rights but in view of the directive principle of State Policy and contain in the article 39d of the Constitution equal pay for equal work has assume the state of Fundamental Rights in service jurisprudence having regard to the constitution mandate of equality in Article 14 and 16 of the constitution".
3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान कार्य के लिए समान वेतन के संदर्भ में एक मानदंड तय किया गया है अर्थात पैरामीटर्स तय किया गया है जो न्यायादेश के बिंदु 42 पर अंकित है। इसी पैरामीटर्स की कसौटी पर बिहार के नियमित एवं नियोजित शिक्षकों के समान कार्यो की जांच माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा की गई है और पाया गया है कि नियोजित शिक्षक भी हूबहू वही कार्य करते हैं जो रेगुलर टीचर करते हैं ।
अतः माननीय उच्च न्यायालय पटना ने नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति समान कार्य के लिए समान वेतन देने का न्यायादेश पारित किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने द्वारा निर्धारित पैरामीटर्स को निरस्त नहीं करेगा यह मेरा विश्वास है।
बिहार में नियोजित शिक्षक और नियमित शिक्षक के द्वारा संपादित कार्यों में कोई अंतर भी नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी इस तथ्य को अपनी संज्ञान में लिया है ।
4. बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में कहीं कोई ऐसा हलफनामा दाखिल नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो या यह कहा गया हो कि बिहार के नियोजित शिक्षक नियमित शिक्षक की तुलना में इन्फीरियर हैं ।अतः नियोजित शिक्षकों की योग्यता के संदर्भ में किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा करना असंवैधानिक और अमान्य है जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना ने अपने आदेश में अंकित किया है।
5. एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए कहती है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G के शिड्यूल 17 में वर्णित प्रावधान के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा इन शिक्षकों का नियोजन किया गया है।
इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय पटना का कहना है कि बिहार सरकार का यह कथन हंड्रेड परसेंट असत्य है ।मानव संसाधन विकास विभाग पटना के द्वारा 2006 की नियमावली निर्मित है न की पंचायती राज के द्वारा ।यहां तक की नियोजित शिक्षकों को 2015 में जो वेतनमान दिया गया है वह भी बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के द्वारा प्रदत है न की पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा। इस तरह नियोजित शिक्षकों का शोषण( भारतीय संविधान की धारा 23) किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार सरकार के शिक्षण संस्थान यदि पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा संचालित होते हैं तो बिहार सरकार ने किस संकल्प संख्या और अधिसूचना के तहत इन शिक्षण संस्थानों को पंचायती राज व्यवस्था को समर्पित किया है।
प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस घिनौने और असंवैधानिक आचरण के लिए दंड का भागीदार नहीं है?( हाई कोर्ट का आदेश बिंदु 52 विशेष दृष्टव्य है)
52. So far as the validity of the Rule 8 of 2006 Rules, I find that the State Government purportedly framed Rule in furtherance of 73rd and 74th amendment of the Constitution and in furtherance of item 17 of schedule 11 and item no. 13 of schedule 12 but in the totality of the fact situation I am of the considered view that purported exercise was only a colourable exercise of power by the State of Bihar, firstly that in the name of exercising legislative power under Rule 243(b) and 243(W) read with item No. 17 of 11th schedule and item no. 13 of 12th schedule, 2006 Rules have been framed but the State Government has not authorized the local self government to set up schools, elementary, middle, secondary and higher secondary. It has not even authorized the local self government to prescribe the service condition. In the totality of the fact situation, I find that #at #every #stage #the #State #Government #is #taking #decision #with #regard #to #prescribing #the #service #condition, #fixing #qualification, #pay #scale #and #the #Directorate #of #Primary #Education #and #secondary #education is supervising the entire education system from primary to higher secondary level which is evident from 2006 Rules itself. The rule was framed by the Human Resources Development Department and not by the Panchayati Raj Department. The resolution granting pay scale and pay band to the Niyojit teacher was also issued by the State Government. If I lift the veil I find that the State Government is the real player regulating the entire service conditions of the Niyojit teacher and the petitioners are in fact the employee of the State Government continuing in the Natinalised School. I also find that the action of the respondents in creating a class of Niyojit teacher for imparting instruction in the same nationalized school on fixed remuneration under Clause 8 of the Rule is a kind of exploitation impermissible under Article 23 of the Constitution.
6. किसी कार्य के पारिश्रमिक( फ्रूट ऑफ लेबर) को कृत्रिम मानदंड के आधार पर अस्वीकार करना एक अपराध है और बिहार सरकार इस अपराध के लिए दोषी है ।समान कार्य संपादित करने वाले को समान मजदूरी ना दी जाए यह न्याय संगत नहीं है । यह एक असंवैधानिक कार्य है किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना ।
7. वित्त( धन) की दृष्टिकोण से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायादेश
A म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ रतलाम मुनिसिपलिटी बनाम वरदीचंद व अन्य(1980)4SCC तथा
B महात्मा गांधी बनाम भारतीय(2017)4SCC में यह आदेश पारित किया है कि धन के अभाव के कारण समान कार्य के लिए समान वेतन न दिया जाए इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में अंकित है ।यही कारण है कि अनेक बार माननीय न्यायमूर्ति नरीमन साहब ने कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में इंटरफेरेंस नहीं होगा ।आदेश यथावत रहेगा। उपर्युक्त के आलोक में मैं अपने प्रिय नियोजित सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे निराशा के बादल को फाड़कर सफलता रूपी रश्मि की किरणों को आलिंगन करें। विश्वास से भरकर पूर्व की भांति नेतृत्व की मदद करें और उसमें विश्वास रखें ,सजग रहें। आप जिस भी संघ में विश्वास करते हो ,आप जिस भी संघ की कार्यप्रणाली और वकील से संतुष्ट हो उस संघ को दिल खोलकर आर्थिक मदद करें ध्यान रखा जाए कि किसी भी संघ की बुराई ना की जाए क्योंकि ऐसा करना आत्मघाती राह है।
1. समान कार्य के लिए समान वेतन की अवधारणा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39d में वर्णित है।
2. यद्यपि संविधान बनाने वालों ने लिखा है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, फिर भी अनुच्छेद 39d का आधार मौलिक अधिकार से संबद्ध अनुच्छेद 14 और 16 होने के कारण चुनौती दिया जाता रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने द्वारा पारित एक न्यायादेश में कहा है कि--
" equal pay for equal work is not expressly declared by the constitution as a fundamental rights but in view of the directive principle of State Policy and contain in the article 39d of the Constitution equal pay for equal work has assume the state of Fundamental Rights in service jurisprudence having regard to the constitution mandate of equality in Article 14 and 16 of the constitution".
3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान कार्य के लिए समान वेतन के संदर्भ में एक मानदंड तय किया गया है अर्थात पैरामीटर्स तय किया गया है जो न्यायादेश के बिंदु 42 पर अंकित है। इसी पैरामीटर्स की कसौटी पर बिहार के नियमित एवं नियोजित शिक्षकों के समान कार्यो की जांच माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा की गई है और पाया गया है कि नियोजित शिक्षक भी हूबहू वही कार्य करते हैं जो रेगुलर टीचर करते हैं ।
अतः माननीय उच्च न्यायालय पटना ने नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति समान कार्य के लिए समान वेतन देने का न्यायादेश पारित किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने द्वारा निर्धारित पैरामीटर्स को निरस्त नहीं करेगा यह मेरा विश्वास है।
बिहार में नियोजित शिक्षक और नियमित शिक्षक के द्वारा संपादित कार्यों में कोई अंतर भी नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी इस तथ्य को अपनी संज्ञान में लिया है ।
4. बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में कहीं कोई ऐसा हलफनामा दाखिल नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो या यह कहा गया हो कि बिहार के नियोजित शिक्षक नियमित शिक्षक की तुलना में इन्फीरियर हैं ।अतः नियोजित शिक्षकों की योग्यता के संदर्भ में किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा करना असंवैधानिक और अमान्य है जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय पटना ने अपने आदेश में अंकित किया है।
5. एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए कहती है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G के शिड्यूल 17 में वर्णित प्रावधान के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा इन शिक्षकों का नियोजन किया गया है।
इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय पटना का कहना है कि बिहार सरकार का यह कथन हंड्रेड परसेंट असत्य है ।मानव संसाधन विकास विभाग पटना के द्वारा 2006 की नियमावली निर्मित है न की पंचायती राज के द्वारा ।यहां तक की नियोजित शिक्षकों को 2015 में जो वेतनमान दिया गया है वह भी बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के द्वारा प्रदत है न की पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा। इस तरह नियोजित शिक्षकों का शोषण( भारतीय संविधान की धारा 23) किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार सरकार के शिक्षण संस्थान यदि पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा संचालित होते हैं तो बिहार सरकार ने किस संकल्प संख्या और अधिसूचना के तहत इन शिक्षण संस्थानों को पंचायती राज व्यवस्था को समर्पित किया है।
प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस घिनौने और असंवैधानिक आचरण के लिए दंड का भागीदार नहीं है?( हाई कोर्ट का आदेश बिंदु 52 विशेष दृष्टव्य है)
52. So far as the validity of the Rule 8 of 2006 Rules, I find that the State Government purportedly framed Rule in furtherance of 73rd and 74th amendment of the Constitution and in furtherance of item 17 of schedule 11 and item no. 13 of schedule 12 but in the totality of the fact situation I am of the considered view that purported exercise was only a colourable exercise of power by the State of Bihar, firstly that in the name of exercising legislative power under Rule 243(b) and 243(W) read with item No. 17 of 11th schedule and item no. 13 of 12th schedule, 2006 Rules have been framed but the State Government has not authorized the local self government to set up schools, elementary, middle, secondary and higher secondary. It has not even authorized the local self government to prescribe the service condition. In the totality of the fact situation, I find that #at #every #stage #the #State #Government #is #taking #decision #with #regard #to #prescribing #the #service #condition, #fixing #qualification, #pay #scale #and #the #Directorate #of #Primary #Education #and #secondary #education is supervising the entire education system from primary to higher secondary level which is evident from 2006 Rules itself. The rule was framed by the Human Resources Development Department and not by the Panchayati Raj Department. The resolution granting pay scale and pay band to the Niyojit teacher was also issued by the State Government. If I lift the veil I find that the State Government is the real player regulating the entire service conditions of the Niyojit teacher and the petitioners are in fact the employee of the State Government continuing in the Natinalised School. I also find that the action of the respondents in creating a class of Niyojit teacher for imparting instruction in the same nationalized school on fixed remuneration under Clause 8 of the Rule is a kind of exploitation impermissible under Article 23 of the Constitution.
6. किसी कार्य के पारिश्रमिक( फ्रूट ऑफ लेबर) को कृत्रिम मानदंड के आधार पर अस्वीकार करना एक अपराध है और बिहार सरकार इस अपराध के लिए दोषी है ।समान कार्य संपादित करने वाले को समान मजदूरी ना दी जाए यह न्याय संगत नहीं है । यह एक असंवैधानिक कार्य है किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना ।
7. वित्त( धन) की दृष्टिकोण से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने न्यायादेश
A म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ रतलाम मुनिसिपलिटी बनाम वरदीचंद व अन्य(1980)4SCC तथा
B महात्मा गांधी बनाम भारतीय(2017)4SCC में यह आदेश पारित किया है कि धन के अभाव के कारण समान कार्य के लिए समान वेतन न दिया जाए इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में अंकित है ।यही कारण है कि अनेक बार माननीय न्यायमूर्ति नरीमन साहब ने कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय पटना के आदेश में इंटरफेरेंस नहीं होगा ।आदेश यथावत रहेगा। उपर्युक्त के आलोक में मैं अपने प्रिय नियोजित सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे निराशा के बादल को फाड़कर सफलता रूपी रश्मि की किरणों को आलिंगन करें। विश्वास से भरकर पूर्व की भांति नेतृत्व की मदद करें और उसमें विश्वास रखें ,सजग रहें। आप जिस भी संघ में विश्वास करते हो ,आप जिस भी संघ की कार्यप्रणाली और वकील से संतुष्ट हो उस संघ को दिल खोलकर आर्थिक मदद करें ध्यान रखा जाए कि किसी भी संघ की बुराई ना की जाए क्योंकि ऐसा करना आत्मघाती राह है।
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