Tuesday, July 31, 2018

नियोजित शिक्षक और सुप्रीम कोर्ट में उनके मौलिक अधिकार समान काम के बदले समान वेतन का मामला!

*बहुत कठिन है डगर सुप्रीम कोर्ट की*

*आज केंद्र सरकार के काउंटर ऐफिडेविट ने बिहार के नियोजित शिक्षकों के बीच कमोबेश बैचेनी जरूर पैदा की है | इस बैचेनी की पड़ताल इस पोस्ट के माध्यम से करने का प्रयास करेंगे*

*+* *पहली बात यह कि "मोड अॉफ रिक्रूटमेंट" का " समान काम के लिए समान वेतन से कोई वास्ता नहीं है और इस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के कई निर्णयों में साफगोई से कहा है | अर्थात किसकी बहाली कैसे हुई है यह इस केस के लिए लीगल प्वाइंट नहीं के बराबर है | लेकिन केंद्र सरकार ने इस बिंदु को क्यों उठाया है यह समझने का प्रयास जरूर किया जाना चाहिए | पटना हाईकोर्ट ने इसी केस के अपने निर्णय के अंतिम पैराग्राफ में चीफ जस्टिस के माध्यम से इस बात का उल्लेख किया है कि अनुच्छेद - 14 उन परिस्थितियों में लागू नहीं होती जब कि एक कार्यस्थल पर काम करने वाले के बीच "रिजनेबल क्लासीफिकेशन" (तार्किक वर्गीकरण) हो तथा वह  वर्गीकरण न्यायसंगत हो | बकौल पटना हाईकोर्ट, बिहार सरकार  हाईकोर्ट में ऐसे किसी तथ्य को प्रस्तुत करने में नाकाम रही जिससे  समान काम के लिए समान वेतन का देने का आदेश स्पष्ट हो गया | बिहार सरकार तथा केंद्र सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में उसी " रिजनेबल क्लासीफिकेशन" को प्रमाणित करने का प्रयास किया जा रहा है*

*++* *शिक्षामित्र शब्द का जिक्र पटना हाईकोर्ट में नहीं उठाया गया था किंतु बिहार सरकार ने अपने एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में इस बात को उठाया है तथा आज केंद्र सरकार के काउंटर ऐफिडेविट में भी इस बात का जिक्र किया गया है | गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के केस के मामले में शिक्षामित्र के लिए सहायक शिक्षक न बनने का फैसला सुनाया था लेकिन इस केस का मसला समान काम के लिए समान वेतन का है न कि सहायक शिक्षक का | सरकार के इस बिंदु में बहुत ज्यादा दम नहीं है लेकिन देखने लायक यह बात है कि विभिन्न संगठनों के वकील इसका प्रतिकार कैसे करते हैं |*

*+++* *सुप्रीम कोर्ट के एक दिग्गज वकील ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के काम करने के अंदाज में मुख्य अंतर समय का होता है | हाईकोर्ट में समय लग सकता है और तैयारी का पर्याप्त मौका मिल जाता है किंतु सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं है | इसलिए जो लोग ये सोच रहे हैं कि 31 जुलाई को एडमिशन के लिए बहस होना है वह शायद एकपक्षीय सोच रहे हैं | अब केस एडमिशन के लिए नहीं सुना जा रहा है बल्कि केस को निर्णित करने के लिए सुना जा रहा है | यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को एफिडेविट दाखिल करने के लिए कहा तथा इंटरवीनर के आवेदनों को एक्सेप्ट कर लिया | 31 जुलाई को यदि कोई तकनीकी समस्या नहीं हुई तो केस की सुनवाई जरूर होगी |*

*++++* *केस के निर्णय के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है | मेरे विचार से यह केस पूरी तरह से ओपेन है | हलांकि सुप्रीम कोर्ट में रंग अबीर उर चुके हैं फिर भी केस को किसी एक पक्ष की ओर झुका हुआ नहीं माना जा सकता है | फिर भी सरकार के एसएलपी के पूर्णतः स्वीकृत होने तथा हाईकोर्ट के निर्णय के पूर्णतः लागू होने की संभावना बिल्कुल कम है | अभी तक जो आर्डर दिये गये हैं वह बीच के रास्ते की ओर इशारा कर रहे हैं | लेकिन वह बीच का रास्ता सिर्फ एरियर माफी का तो कतई नहीं है | यह संभावित बीच का रास्ता किसके लिए फायदेमंद होता है या किसके लिए नुकसानदेह, यह तो आने वाले दिनों में साफ हो पायेगा | अभी तक सुप्रीम कोर्ट के  रूख से एक बात क्लीयर है कि वह समान के लिए समान वेतन देने के मूड में है और यह कैसे दिया जा सकता है; इस पर सरकारों से पूछ रही है | सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार के होमगार्ड को समान काम के लिए समान वेतन का आदेश दिया जाना निश्चित रूप से आशा का संचार कर सकता है | किंतु सुप्रीम कोर्ट  इस मामले में क्या निर्णय देगा इसको पूर्वानुमानित नहीं किया जा सकता है | सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई कहीं से आसान नहीं है |  विभिन्न संगठनों के "नवोत्पन्न चाणक्यों" को अपनों में लड़ने के बजाए मुख्य लड़ाई पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा | अन्यथा हाईकोर्ट के फैसले से उत्साहित होकर अपनों में लड़ने वाले तथा लड़ाने वाले "नवोत्पन्न चाणक्यों " की खैर नहीं है |*

        

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